प्रेम और मोह के बिच भेद by krishna
Picture credit by Nidtoons
हमारा आज का विषय है मोह।  मोह का मतलब  होता है ऐसा आकर्षण जिसे छूटा न जा सके।  ऐसा खिचाव जिसपर  हम काबू ना  पा सके।  यही होता हे ना मोह। विवश  होकर हम खींचे चले जाते है।  कुछ प्राप्त करने के लिए हम सब कुछ दाव  पर लगा देते है।  वो मोहा का पत्र कोई व्यक्ति हो सकता हे, तो कोई सत्ता, सम्पति, वस्तु हो सकती है।  या शराब और जुए जैसा कोई व्यसन हो सकता हे। जिस प्रकार लोहा चुम्बक से छूट नही  सकता वैसे ही हम अपने मोहसे छूट नहीं पाते ।  
हमें तो अपने मन का मोह सदा ही प्रेम लगता है।  किन्तु गेहेराइसे विचार करेंगे तो हम तुरंत ही जान पाएंगे की प्रेम और मोह के बिच एक बुनयादी भेद है।  प्रेम होता है तो हम किसी के सुख की इच्छा करते हे। जब मोह होता हे तो हम किसी की सुख की कामना करते हे। बस इतना समझने पर प्रेम और मोहा का भेद तुरंत ही समजमें आ जाता है।  किसी व्यक्ति के प्रति हमारे मन में प्रेम होता हे। तब हम उसे सुख देने का प्रयास करते है।  उसके  प्रति मोह होता हे तो हम उसके माध्यम से  स्वयं सुख प्राप्त करने का प्रयत्न करते हे।  क्या ये सत्य नहीं प्रेम के केंद्र में हम नहीं होते मोह के केंद्र में केवल हम होते हे। 
जिस व्यक्ति पर हमारा मोह होता हे उस व्यक्ति को  हम हमारे जीवन का आधार मान लेते हे।  जब वो प्राप्त नहीं होता तो हमारे मन में विक्षिप्तता प्रवेश कर लेती हे, जूनून पैदा होता  हे । रात दिन हम उस व्यक्ति को प्राप्त करने के बारेमे सोचते हे। उसे प्राप्त करने के लिए उचित अनुचित का विचार नहीं करते।  यही कारन हे की मोह से भरा व्यक्ति स्वयं को और समाज को  हानि पहुँचता है। तो क्या इस मोह से बचना इतना कठिन हे।  नहीं।    
मोह से  छूटने का सरल सा उपाय हे।  मोह को प्रेम में परिवर्तित करदे। बस इतना जान ले की हमारा  सुख और दुःख किसी व्यक्ति और वास्तु के कारन नहीं हो सकता।  सुख और दुःख ये तो हमारे अंतर का व्यव्हार हे।  हमारी आत्मा का स्वाभाव हे।  जैसे ही हम किसी को हमारे सुख का आधार मानना बंद करदेते हे क्या तुरंत ही हमारा पागल पन नहीं छूट जाता?
बचपन में खेल के लिए पागल पन था बड़े होने पर खेल के प्रति प्रेम अवश्य हे पर पागल पन नहीं रहा।  अर्थात मोह बाँधनेका प्रयास करता हे इसीलिए सदा दुःख का कारन होता हे। 
प्रेम मुक्ति देता हे इसीलिए सदा सुख का आधार होता हे।